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Friday 8 March 2013

new date 11 monday ki... stay continued


new date 11 monday ki... stay continued
अब वृहद पीठ सुनेगी बीएड अभ्यर्थियों का मामला
गैर टीईटी बीएड को सहायक अध्यापक बनाने पर नए सिरे से होगी सुनवाई
• अमर उजाला ब्यूरो

इलाहाबाद। बिना टीईटी उत्तीर्ण बीएड डिग्री धारकोें को भी सहायक अध्यापक चयन प्रक्रिया में शामिल करने का मामला एक बार फिर खटाई में पड़ गया है। इस मामले पर प्रभाकर सिंह केस में दिए हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को वृहद पीठ को संदर्भित कर दिया गया है। अब तीन न्यायाधीश की पीठ नए सिरे से पूरे मामले पर विचार करने के बाद फैसला सुनाएगी।
प्रदेश सरकार द्वारा बिना टीईटी उत्तीर्ण कई बीएड डिग्री धारकोें का अभ्यर्थन रद किए जाने के बाद शिवकुमार शर्मा, यतींद्र कुमार त्रिपाठी आदि ने याचिका दाखिल की थी। इनका कहनाथा कि खंडपीठ के निर्णय के बावजूद प्रदेश सरकारने उनका अभ्यर्थन नहीं माना। ऐसी स्थिति में सरकार को निर्देश दिया जाए। मामले की सुनवाई कररहे न्यायमूर्ति एपी साही ने कहा मेरी समझ से टीईटी सभी के लिए अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में उन्होंने खंडपीठ के फैसले से असहमति जताते हुए मामले को वृहद पीठ को संदर्भित किया। अब मुख्य न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई के लिए तीन जजों की पीठ गठित करेेंगे।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने 11 नवंबर 2011 को टीईटी की अनिवार्यता समाप्त करने को लेकर दाखिल सैकड़ों याचिकाओं को खारिज करते हुए सहायक अध्यापक भर्ती में टीईटी सभी के लिए अनिवार्य बताया था। इस फैसले के खिलाफ अपील दाखिल की गई। अपील भी खारिज कर दी गई परंतु खंडपीठ ने कहा कि एनसीटीई की अधिसूचना के मुताबिक सहायक अध्यापक भर्ती के लिए अनिवार्य अर्हता के अंतर्गत ही बीएड डिग्री धारकोें को इससे छूट दी गई है। इसलिए बीएड डिग्री धारी अभ्यर्थियों को जो टीईटी उत्तीर्ण नहीं हैं प्रवेश प्रक्रिया में शामिल कर लिया जाए। खंडपीठ ने बीएड डिग्री धारकों को मौका देने का निर्देश दिया था। इस आदेश का पालन नहीं होने पर दाखिल अवमानना याचिका पर बेसिक शिक्षा सचिव को नोटिस भी जारी किया जा चुका है।
•प्रभाकर सिंह केस में खंडपीठ के आदेश से एकल न्यायपीठ असहमत
2 लाख से ज्यादा प्राथमिक शिक्षको को मिल सकती है नौकरी
क्या उत्तर प्रदेश में सरकार को शिक्षको की वाकई जरुरत है? शायद हाँ और शायद नहीं| “शायद” इसलिए क्यूंकि ये तर्क और कुतर्क का विषय है| सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 2007 (जब से स्टूडेंट का डाटा ऑनलाइन हुआ है) के बाद लगातार छात्र संख्या गिरती जा रही है| पिछले पांच साल से कोई भर्ती प्राइमरी शिक्षक की नहीं हुई है| इसके बाबजूद प्रदेश में हैं कोई हाहाकार नहीं है| स्कूल खुल रहे है|

 कहीं जरुरत से ज्यादा शिक्षक है तो कहीं शिक्षक की कमी है| मगर बच्चो की उपस्थिति को पैमाने पर तौला जाए तो शायद प्रदेश में शिक्षको की कोई कमी है ही नहीं| क्यूंकि मिड डे मील के आंकड़ो के मुताबिक प्राथमिक स्कूलों में औसतन 60 प्रतिशत बच्चे ही नामांकन के सापेक्ष स्कूल में पहुच रहे है| जाहिर है नामांकन और उपस्थिति सवालों के घेरे में है| बसपा सरकार हो या सपा सरकार दोनों में हालत एक जैसी है| 

प्राथमिक शिक्षा की दुर्दशा न लगे इसके लिए किसी भी बच्चे को फेल न करने का शासनादेश कर दिया गया| इसके पीछे तर्क दिया गया- बच्चो का मनोबल नहीं गिराना है| ये कुतर्क है या तर्क जनता को सोचना है| मगर सरकार ने मान लिया है| प्राथमिक स्कूल के बच्चे वोटर नहीं होते इसलिए माया, मुलायम और अखिलेश किसी को चिंता करने की जरुरत भी नहीं है|  

प्रदेश में शिक्षा का कोई संकट नहीं है| हकीकत ये है कि प्राथमिक सरकारी स्कूलों में शिक्षा का कार्य शिक्षा मित्र (कॉन्ट्रैक्ट टीचर) ने संभाल लिया है| 3500 रुपये मासिक वेतन वाले शिक्षको का काम रुपये 25000 हजार मासिक का वेतन पाने वाले स्थायी प्राथमिक शिक्षको से बेहतर निकला| 

ऐसे में बैठे बिठाये 72000 शिक्षको को भर्ती करके 1800 करोड़ सालाना का राजस्व भार जनता के खजाने पर क्यूँ डाला जाए? ये बड़ा और चिंतनीय विषय तो है ही सरकार के बड़े बड़ो के दिमाग में विचाराधीन भी है| प्रदेश के करदाता के साथ ये अन्याय होगा कि उसके द्वारा चुकाए गए धन का दुरूपयोग हो| एक प्राथमिक शिक्षक के वेतन के बदले तीन तीन शिक्षक संविदा पर रखे जा सकते है| और टेट पास दो लाख से ज्यादा बेरोजगारों को नौकरी भी मिल जाएगी| वर्तमान में अदालत में उलझा मामला भी मिनटों में निपट जायेगा| 
वर्तमान में हालत तो यही है| उन प्राथमिक स्कूलों के बच्चे जहाँ 100 बच्चो पर चार पांच शिक्षक की तैनाती है वहां के कक्षा 5 के बच्चे पहाड़े नहीं जानते| शिक्षा का स्तर घटिया है और गुणवत्ता की तो वाट ही लगी हुई है| ऐसे में मध्य प्रदेश की तरह उत्तर प्रदेश में भी संविदा शाला शिक्षक की तैनाती ही सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है| सस्ते में शिक्षक और काम के बदले वेतन दोनों ल लाभ| सरकार पर बोझ भी कम पड़ेगा| शायद UPTET की न्यायालय में चल रही उधेड़बुन ये सबसे अच्छा विकल्प होगा|
अंग्रेजी की बाध्यता नहीं रहेगी परीक्षा में
रसिक द्विवेदी, सुल्तानपुर

बैंक में विभिन्न पदों के लिए परीक्षा की तैयारी कर रहे हिंदी माध्यम के उन लोगों के लिए यह खबर काफी सुकून देने वाली है। पीओएस/एमटीएस (प्रोबेशनरी अधिकारी/ ­मैनेजमेंट ट्रेनी) की भर्ती के लिए सामूहिक लिखित परीक्षा से अंग्रेजी रचना का प्रश्नपत्र हटा दिया गया है। सितंबर 2011 में एक संस्था द्वारा आयोजित कराई गई भर्ती परीक्षा के वर्णनात्मक प्रश्नपत्र में हिंदी में उत्तर देने का विकल्प खत्म कर दिया गया था। इस अन्यायपूर्ण कृत्य के खिलाफ सूचना के अधिकार के तहत आवाज उठाई गई तो, पहले कईविभागों ने हीलाहवाली की। मामला आखिरकार प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचा जिसके बाद संबंधित संस्था को भावी लिखित परीक्षा से अंग्रेजी रचना का प्रश्नपत्र हटाना पड़ा।
स्टेट बैंक आफ इंडिया को छोड़कर देश के सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख 19 राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए मैनेजमेंट ट्रेनी (प्रबंध प्रशिक्षु) और प्रोबेशनरी आफीसर (परिवीक्षाधीन अधिकारी) पदों की भर्ती के लिए वर्ष 2011 में आइपीबीएस (इंस्टीट्यिूट आफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन) संस्था द्वारा परीक्षा आयोजित कराने का प्रावधान किया गया। संस्था ने हिंदी में उत्तर लिखे जाने का विकल्पसमाप्त कर दिया। अचानक इस परिवर्तन से हिंदी भाषी प्रतिभागियों को बड़ा धक्का लगा। आरटीआइ कार्यकर्ता डॉ.राकेश सिंह संस्था के इस निर्णय पर सवाल उठाया। कहाकि संविधान के अनुच्छेद 343 व 351 की मूलभावना के साथ खिलवाड़ किया गया है। प्रकरण में मानवाधिकार आयोग से हस्तक्षेप करने की अपील की।
 यूपी के 18 हजार सिपाहियों को राहत

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को वापस लेने की अनुमति दी
अब तक का
घटनाक्रम

• 8 दिसंबर, 2008 को उच्च न्यायालय ने सारी बर्खास्तगी रद्द कर दी और निरस्त भर्ती बोर्डों से चयनित सभी सिपाहियों को तैनाती के निर्देश दिए।
• हाईकोर्ट के आदेश पर 9 दिसंबर, 2008 को सरकार ने हाईकोर्ट में विशेष अपील दाखिल करने का फैसला किया।
• 4 मार्च, 2009 को हाईकोर्ट की डबल बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद विशेष अपील खारिज कर दी और पुराने फैसले को बरकरार रखा।
• सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के फैसले कोबरकरार करने को कहा।
• इस पर सरकार ने सर्वोच्च अदालत में विशेष रिट याचिका दायर की थी।
• सपा सरकार ने सत्ता में आने के बाद पहले कैबिनेट बैठक में एसएलपी वापस लेने का फैसला किया था।
• 8 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल उत्तर प्रदेश सरकार की एसएलपी को औपचारिक व न्यायिक प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए वापस ले लिया गया।
नई दिल्ली। यूपी के 18000 से अधिक कांस्टेबल के लिए राहतभरी खबर है। इन सभी की नियुक्तियों को प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बसपा सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यूपी सरकार को इस मसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को वापस लेने की अनुमति प्रदान कर दी।
मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल 2005-06 के दौरान हुई 18400 कांस्टेबलों की भर्ती में अनियमितताओं के आरोप पर दाखिल पीआईएल पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद मई 2009 में मायावती सरकार ने शीर्ष कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट के 4 मार्च 2009 के आदेश के खिलाफ अपील को सर्वोच्च अदालत ने स्वीकार कर लिया था। हालांकि सपा सरकार ने इस याचिका को वापस लेने की अपील सर्वोच्च अदालत से की थी, जिसे शुक्रवार को जस्टिस अफताब आलम की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्वीकार कर लिया।
कांस्टेबलों की भर्ती में व्यापक स्तर पर गड़बड़ी की शिकायतों के चलते जून 2007 में एफआईआर दर्ज की गई थी। तत्कालीन बसपा सरकार ने ब्यूरोक्रेट शैलजा कांत मिश्रा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था, जिसने सितंबर 2007 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद प्रदेश कैबिनेट ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की थी, लेकिन सीबीआई ने इसे लेने से इंकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को ऐसे मामलों को उचित समीक्षा और जांच के ऐसे मामलों से निपटने को कहे जाने के बाद सरकार ने शीर्ष कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इस बीच लखनऊ में सपा प्रवकत और कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी ने कहा कि इससे 18 हजार से अधिक कांस्टेबलों के साथ न्याय हुआ है
परियोजना कार्यालय से अनुदेशकों का होगा चयन
Updated on: Fri, 08 Mar 2013 08:40 PM (IST)

हरदोई, कार्यालय संवाददाता: उच्च प्राथमिक विद्यालयों में अनुदेशकों की चयन प्रक्रिया में खेल नहीं हो सकेगा। चयनित सूची राज्य परियोजना कार्यालय से भेजी जाएगी। जिला स्तरीय समिति चयनित आवेदकों की काउंसिलिंग कराएगी और फिर उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा जिसके बाद एक जुलाई से उनकी विद्यालयों में तैनाती कर दी जाएगी।
परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कला, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा व कार्य शिक्षा के 1380 अनुदेशकों की नियुक्ति होनी है। राज्य परियोजना निदेशालय से आन लाइन आवेदन मांगे गए थे और 23 मार्च तक आवेदन जमा होने हैं। जिला समन्वयक प्रशिक्षण विनोद कनौजिया ने बताया कि परियोजना स्तर से पूरी नियुक्ति प्रक्रिया 8 अप्रैल तक पूरी कर सूची भेजी जाएगी और सूची में शामिल चयनित आवेदकों की 30 अप्रैल को जिला स्तर पर समिति काउंसिलिंग करवाएगी। काउंसिलिंग समिति अध्यक्ष, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान की प्राचार्या डा.मीरा पाल तथा बीएसए सचिव बनाए गए हैं। जीजीआईसी की प्रधानाचार्या आशा कनौजिया व जिला समन्वयक प्रशिक्षण विनोद कनौजिया इसके सदस्य होंगे। काउंसिलिंग की सूची 10 मई को जिलाधिकारी अनुमोदित करेंगे और उसके बाद 15 मई से नियुक्ति को हरी झंडी देकर 16 मई से उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा और फिर एक जुलाई 2013 से उन्हें विद्यालयों में शिक्षण कार्य के लिए भेज दिया जाएगा।

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